हमारे देश ने Param Vir Chakra (PVC) के कुल 21 विजेताओं को देखा है। यह सम्मान उन men of steel को दिया गया है जिन्होंने अपने देश को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए अपने रास्ते से बाहर जाने का काम किया है।
उन्होंने कुछ ऐसे कार्य किए हैं जो निस्वार्थ और सर्वोच्च वीरता के हैं, इसीलिए उन्होंने देश के सबसे बड़े wartime gallantry award को जीता है।
यह कहते हुए, हम इन बहादुर व्यक्तियों को कितनी अच्छी तरह जानते हैं?
Major. Somnath Sharma
Maj. Somnath Sharma ने अपनी टूटी हुई बांह के साथ Srinagar और Badgam aerodrome पर उन्हें और उनकी टीम पर हमला कर रहे दुश्मन को रोका। उन्होंने खुद magazines भरे और उन्हें light machine gunners को दिया। उन्होंने एक inspiring life जी और उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके साथी सैनिक दुश्मन से लड़ने और विजेता बनने के लिए प्रेरित हुए।
Major. Somnath Sharma 1947 में Kashmir में पहले Param Vir Chakra (PVC) प्राप्त करने वाले पहले Indian Army officer थे। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, अपने साथियों को प्रेरित करते हुए और उनका नेतृत्व करते हुए, दुश्मन के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
उनकी वीरता और बलिदान की कहानी आज भी Indian Army में प्रेरणा का स्रोत है। उनके साहस और देश के प्रति समर्पण को हमेशा याद किया जाएगा।
Major. Somnath Sharma का जन्म 31 जनवरी 1923 को Himachal Pradesh के Dadh गांव में हुआ था। उन्होंने Prince of Wales Royal Indian Military College, Dehradun से अपनी शिक्षा पूरी की और 1942 में Indian Army में commissioned हुए।
1947 में, जब Pakistan ने Kashmir पर हमला किया, तो Major. Somnath Sharma की कंपनी को Srinagar Airport की रक्षा करने के लिए भेजा गया। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन का सामना किया और अपने साथियों को प्रेरित किया।
3 नवंबर 1947 को, Badgam में एक भीषण लड़ाई के दौरान, Major. Somnath Sharma गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन फिर भी वह अपनी पोजीशन पर डटे रहे और दुश्मन को रोकते रहे। उनकी बहादुरी और नेतृत्व ने उनके साथियों को प्रेरित किया और वे विजयी हुए।
“Major. Somnath Sharma की वीरता और बलिदान को देखते हुए, उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया। वह इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने वाले पहले Indian Army officer बने।”
आज, Major. Somnath Sharma की वीरता की कहानी Indian Army में एक legend बन गई है। उनका जीवन और बलिदान young officers और soldiers के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी स्मृति में, Indian Army ने Jammu में एक memorial बनाया है जहां हर साल उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी जाती है।
Major. Somnath Sharma का जीवन हमें देश के प्रति निस्वार्थ सेवा और समर्पण की सीख देता है। उनकी वीरता हमेशा याद की जाएगी और वह हमेशा देश के नायकों में से एक रहेंगे।
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Naik Jadunath Singh
Naik Jadunath Singh ने enemy के attack के समय एक forward post का नेतृत्व किया। Naik और उनकी टीम को इस attack के कारण भारी नुकसान हुआ। हालांकि, अंततः Singh किसी तरह अपने सभी सैनिकों को बचाने में कामयाब रहे, भले ही वह खुद enemy की गोलियों का शिकार हो गए। उन्होंने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया और सभी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उनकी ताकत प्रशंसनीय है।
Naik Jadunath Singh को मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया, जो India का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उन्होंने 1948 में Kashmir में Taindhar के युद्ध के दौरान अपनी अद्भुत वीरता और साहस का प्रदर्शन किया।
Naik Jadunath Singh के नेतृत्व में एक छोटी सी टुकड़ी ने एक strategic post की रक्षा की, जिस पर enemy ने कई बार हमला किया। हालांकि उनकी टीम के पास limited resources और manpower थी, फिर भी उन्होंने दुश्मन को पीछे धकेलने में कामयाबी हासिल की।
लेकिन इस प्रक्रिया में, Naik Jadunath Singh के अधिकांश साथी शहीद हो गए और वह खुद भी गंभीर रूप से घायल हो गए। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अकेले ही दुश्मन से लोहा लेते रहे। उनकी बहादुरी ने उनके जवानों को प्रेरित किया और वे दुश्मन को हराने में कामयाब रहे।
“Naik Jadunath Singh की वीरता और बलिदान की कहानी आज भी Indian Army में एक प्रेरणा का स्रोत है। उनका साहस और देश के प्रति समर्पण अनुकरणीय है।“
Naik Jadunath Singh का जन्म 21 नवंबर 1916 को Shahjahanpur, Uttar Pradesh में हुआ था। वह एक किसान परिवार से थे और बचपन से ही देश सेवा के लिए प्रेरित थे। उन्होंने 1941 में British Indian Army में भर्ती ली और बाद में Indian Army में शामिल हो गए।
1948 के युद्ध के दौरान, Naik Jadunath Singh की कंपनी को Taindhar sector में तैनात किया गया था। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन का सामना किया और अपने साथियों को प्रेरित किया। उनकी वीरता और नेतृत्व ने भारतीय सेना को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Naik Jadunath Singh की वीरगाथा हमें देश के प्रति निस्वार्थ सेवा और समर्पण की प्रेरणा देती है। वह हमेशा देश के महान नायकों में से एक के रूप में याद किए जाएंगे।
2nd Lt Rama Raghoba Rane
2nd Lt Rama Raghoba Rane ने mines और roadblocks को clear किया और tank के लिए रास्ता बनाते हुए machine gun की गोलियों का सामना किया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उनकी लगन अद्भुत थी और उन्होंने Rajouri पर स्थिर अग्रिम कार्रवाई में सहायता की। इसके अलावा, उन्होंने एक tank को roadblock तक ले जाकर, उसके नीचे दुबककर सभी mines को भी clear किया।
2nd Lt Rama Raghoba Rane को 1947-48 के India-Pakistan युद्ध के दौरान उनकी बहादुरी और साहस के लिए Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया। वह Bombay Sappers के एक young officer थे और उन्होंने Naushera sector में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया।
उनकी टुकड़ी को एक महत्वपूर्ण bridge पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था, लेकिन वह क्षेत्र mines से भरा हुआ था और दुश्मन की भारी machine gun fire का सामना कर रहा था। 2nd Lt Rane ने स्वयं आगे बढ़कर mines को निष्क्रिय करना शुरू कर दिया और अपनी जान की परवाह किए बिना काम करते रहे।
एक mine विस्फोट में वह गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना काम जारी रखा। उन्होंने एक tank को सुरक्षित रास्ता दिखाया और फिर खुद उसे चलाकर एक और roadblock पर ले गए। वहां उन्होंने tank के नीचे दुबककर सभी mines को clear किया और अपनी टुकड़ी के लिए रास्ता साफ किया।
2nd Lt Rane की वीरता और समर्पण ने उनके साथियों को प्रेरित किया और वे दुश्मन को हराने में कामयाब रहे। उनके अद्भुत साहस और लगन के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से नवाजा गया।
2nd Lt Rama Raghoba Rane का जन्म 26 जून 1918 को Karwar, Karnataka में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद Indian Army में कमीशन लिया और Bombay Sappers में शामिल हो गए।
उनकी वीरता की कहानी आज भी Indian Army में एक inspiration है। उनका जीवन हमें कर्तव्य के प्रति समर्पण और बहादुरी की सीख देता है। वह हमेशा देश के नायकों में से एक के रूप में याद किए जाएंगे।
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Company Havildar Major Piru Singh
Company Havildar Major Piru Singh ने अकेले ही एक enemy post पर कब्जा कर लिया और एक दुश्मन पर हमला किया, जब अचानक एक grenade उन्हें लगा।
फिर भी, उन्होंने grenades फेंके और मृत्यु के शिकार होने से पहले कम से कम एक और bunker को नष्ट कर दिया।
Major Piru Singh को उनकी अद्भुत वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया। उन्होंने 1948 में Jammu और Kashmir के Tithwal sector में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी कंपनी को एक strategic hill पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था, जो दुश्मन के कब्जे में था। Major Piru Singh ने अपनी जान की परवाह किए बिना आगे बढ़ते हुए दुश्मन के bunkers पर हमला किया।
वह अकेले ही एक के बाद एक कई bunkers को नष्ट करते रहे, भले ही उन्हें गंभीर चोटें आईं। एक समय ऐसा भी आया जब एक grenade blast में वह बुरी तरह घायल हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।
अंततः, उनकी बहादुरी और दृढ़ संकल्प ने उनकी कंपनी को दुश्मन को हराने और उस strategic hill पर कब्जा करने में मदद की। हालांकि, इस मुकाबले में Major Piru Singh अपनी जान गंवा बैठे।
Major Piru Singh का जन्म 20 मई 1918 को Rajasthan के Jhunjhunu जिले के Beri गांव में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही Indian Army में शामिल होने का सपना देखा था और आखिरकार 1936 में वह Rajputana Rifles regiment में भर्ती हुए।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, Major Piru Singh ने Burma में जापानी सेना के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया और अपनी वीरता के लिए सम्मानित किए गए। 1947-48 के Kashmir युद्ध के दौरान, उन्होंने एक बार फिर अपनी अद्भुत वीरता और साहस का प्रदर्शन किया।
Major Piru Singh की कहानी हमें देश के प्रति समर्पण और कर्तव्य की भावना सिखाती है। उनका बलिदान और साहस हमेशा याद किया जाएगा और वह युवाओं के लिए एक प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।
Lance Naik Karam Singh
Lance Naik Karam Singh एक post का नेतृत्व कर रहे थे जब enemy ने उन पर आठ strikes किए। हालांकि Sikhs ने हर wave को विफल करने में कामयाबी हासिल की, लेकिन Karam Singh गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके अलावा, जब उन्होंने दो दुश्मन सैनिकों को बहुत करीब आते देखा, तो उन्होंने घुसपैठियों को तुरंत मार डाला।
Lance Naik Karam Singh को उनकी अद्भुत वीरता और साहस के लिए Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उन्होंने 1948 में Kashmir में Tithwal sector में अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया।
Lance Naik Karam Singh की टुकड़ी को एक महत्वपूर्ण post की रक्षा करने का काम सौंपा गया था। दुश्मन ने उनकी पोजीशन पर कई बार हमला किया, लेकिन हर बार उन्हें पीछे हटना पड़ा। Karam Singh ने अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ाई का नेतृत्व किया और अपने साथियों को प्रेरित किया।
हालांकि, लड़ाई के दौरान Karam Singh गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके शरीर में कई गोलियां लगीं और वह खून से लथपथ हो गए। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी पोस्ट पर डटे रहे।
जब दो दुश्मन सैनिक उनकी पोस्ट के बहुत करीब आ गए, तो Karam Singh ने अपनी बची हुई ताकत इकट्ठा की और उन पर हमला कर दिया। उन्होंने अपनी संगीन से दोनों घुसपैठियों को मार डाला और अपनी पोस्ट को सुरक्षित रखा।
Lance Naik Karam Singh की वीरता और साहस ने उनके साथियों को प्रेरित किया और वे दुश्मन को हराने में कामयाब रहे। उनका बलिदान और समर्पण Indian Army में एक प्रेरणा का स्रोत बन गया है।
Karam Singh का जन्म 15 सितंबर 1915 को Barnala, Punjab में हुआ था। वह एक किसान परिवार से थे और बचपन से ही देश सेवा के लिए प्रेरित थे। उन्होंने 1941 में British Indian Army में भर्ती ली और बाद में Indian Army में शामिल हो गए।
1948 के युद्ध के दौरान, Lance Naik Karam Singh की टुकड़ी Tithwal sector में तैनात थी। उन्होंने अपने नेतृत्व और वीरता से भारतीय सेना को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
Lance Naik Karam Singh की कहानी हमें देश के प्रति समर्पण और बलिदान की सीख देती है। उनका साहस और वीरता हमेशा याद की जाएगी और वह हमेशा देश के नायकों में से एक रहेंगे।
Captain Gurbachan Singh Salaria
Captain Gurbachan Singh Salaria UN Force का हिस्सा थे। उस समय के दौरान, उनके Gorkhas या Nepali सैनिकों ने एक roadblock पर हमला किया, जिसमें 40 सैनिकों को मार गिराया और कम से कम दो दुश्मन वाहनों को नष्ट कर दिया। जबकि बाकी दुश्मन सैनिक भाग गए, Salaria भारी गोली लगने के कारण शहीद हो गए।
Captain Salaria को मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उन्होंने 1961 में Congo में United Nations Operation के दौरान अपनी बहादुरी और नेतृत्व का प्रदर्शन किया।
Captain Salaria की टुकड़ी को Katanga Province में तैनात किया गया था, जहां सशस्त्र बलों और स्थानीय विद्रोहियों के बीच संघर्ष चल रहा था। उन्हें एक महत्वपूर्ण roadblock को clear करने का आदेश दिया गया, जिस पर विद्रोहियों का कब्जा था।
Captain Salaria ने अपने Gorkha soldiers का नेतृत्व किया और विद्रोहियों पर हमला बोल दिया। उनकी टुकड़ी ने 40 से अधिक विद्रोहियों को मार गिराया और उनके वाहनों को नष्ट कर दिया। यह एक साहसिक कार्रवाई थी जिसने विद्रोहियों को भारी नुकसान पहुंचाया।
हालांकि, इस ऑपरेशन के दौरान Captain Salaria गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके शरीर में कई गोलियां लगीं और वह वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी वीरता और बलिदान ने उनके साथियों को प्रेरित किया और वे मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने में कामयाब रहे।
Captain Gurbachan Singh Salaria का जन्म 29 नवंबर 1935 को Gurdaspur, Punjab में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा King George’s Royal Indian Military School, Bangalore से पूरी की और 1956 में Indian Army में commissioned हुए।
वह एक बहादुर और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी थे जिन्होंने हमेशा अपने देश और कर्तव्य को सर्वोपरि रखा। उनकी वीरता और नेतृत्व की कहानी आज भी Indian Army में प्रेरणा का स्रोत है।
Captain Gurbachan Singh Salaria का बलिदान हमें देश सेवा और मानवता के प्रति समर्पण की सीख देता है। उनका साहस और वीरता हमेशा याद की जाएगी और वह हमेशा देश के महान नायकों में से एक रहेंगे।
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Major Dhan Singh Thapa
Major Dhan Singh Thapa Ladakh में posted थे जब वह Chinese attack के दौरान घायल हो गए। दुश्मन द्वारा उन्हें overpower करने से पहले, उन्होंने hand-to-hand combat में कई दुश्मन सैनिकों को मार डाला। लोगों ने उन्हें मृत मान लिया था जब तक यह पता नहीं चला कि उन्हें Prisoner of War (PoW) के रूप में लिया गया था। हालांकि, बाद में Major को रिहा कर दिया गया।
Major Dhan Singh Thapa को 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी बहादुरी और वीरता के लिए Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया। उन्होंने Ladakh के Chushul sector में अपनी पोस्ट की रक्षा करते हुए अद्भुत साहस का प्रदर्शन किया।
20 अक्टूबर 1962 को, चीनी सेना ने Major Thapa की पोस्ट पर हमला कर दिया। उनके पास सीमित संसाधन और सैनिक थे, लेकिन फिर भी उन्होंने दुश्मन का डटकर मुकाबला किया। Major Thapa ने खुद भी हथियार उठाया और अपने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन से लोहा लिया।
लड़ाई के दौरान, Major Thapa गंभीर रूप से घायल हो गए और उनके अधिकांश साथी शहीद हो गए। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अकेले ही दुश्मन से मुकाबला करते रहे। उन्होंने hand-to-hand combat में कई चीनी सैनिकों को मार गिराया।
आखिरकार, Major Thapa को दुश्मन ने घेर लिया और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। चीनी सेना ने उन्हें Prisoner of War के रूप में ले लिया और उनके बारे में कोई खबर नहीं थी। लोगों ने उन्हें मृत मान लिया था।
हालांकि, बाद में यह पता चला कि Major Thapa जीवित हैं और उन्हें चीनी सेना ने कैद कर रखा है। लगभग चार महीने बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और वह अपने देश वापस लौट आए।
Major Dhan Singh Thapa की वीरता और देश के प्रति समर्पण की भावना अनुकरणीय है। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा की और अपने कर्तव्य का पालन किया। उनका साहस और बलिदान हमेशा याद किया जाएगा।
Major Thapa का जन्म 10 अप्रैल 1928 को Shimla, Himachal Pradesh में हुआ था। उन्होंने Indian Military Academy से स्नातक किया और 1949 में Indian Army में commissioned हुए। वह एक बहादुर सैनिक और कुशल नेता थे जिन्होंने कई मुश्किल परिस्थितियों में अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया।
Major Dhan Singh Thapa की कहानी हमें देश के प्रति निस्वार्थ सेवा और समर्पण की प्रेरणा देती है। उनका जीवन और बलिदान हमेशा देश के नायकों में से एक के रूप में याद किया जाएगा।
Subedar Joginder Singh
Subedar Joginder Singh ने Tongpeng La क्षेत्र में एक position पर कब्जा किया हुआ था। वहां उन्हें Chinese सैनिकों द्वारा बार-बार हमलों का सामना करना पड़ा। जांघ में घायल होने के बावजूद भी उन्होंने evacuation से इनकार कर दिया। इसके अलावा, उन्होंने एक light machine gun को भी संभाला और काफी संख्या में Chinese दुश्मनों को मार गिराया। हालांकि, दुश्मन को हराने के बाद Singh की मृत्यु हो गई।
Subedar Joginder Singh को मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान NEFA (North-East Frontier Agency) में अपनी अद्भुत वीरता और साहस का प्रदर्शन किया।
Subedar Joginder Singh की टुकड़ी को Bum La sector में एक महत्वपूर्ण post की रक्षा करने का काम सौंपा गया था। Chinese सेना ने उनकी पोजीशन पर कई बार हमला किया, लेकिन हर बार उन्हें पीछे हटना पड़ा। Joginder Singh ने अपने जवानों का नेतृत्व किया और उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित किया।
लड़ाई के दौरान, Joginder Singh की जांघ में गोली लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन उन्होंने इलाज के लिए पीछे जाने से इनकार कर दिया और अपनी पोस्ट पर डटे रहे। उन्होंने खुद एक LMG (light machine gun) संभाला और दुश्मन पर भारी नुकसान पहुंचाया।
Joginder Singh की बहादुरी और नेतृत्व ने उनके जवानों को प्रेरित किया और वे चीनी सेना को पीछे धकेलने में कामयाब रहे। लेकिन इस लड़ाई में Subedar Joginder Singh शहीद हो गए। उनका बलिदान देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।
Subedar Joginder Singh का जन्म 26 सितंबर 1921 को Moga, Punjab में हुआ था। उन्होंने 1936 में British Indian Army में भर्ती ली और बाद में Indian Army में शामिल हो गए। वह एक वीर सैनिक और कुशल नेता थे।
1962 के युद्ध में उनकी वीरता और नेतृत्व ने भारतीय सेना के मनोबल को बढ़ाया और दुश्मन को पीछे धकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका बलिदान हमेशा याद किया जाएगा और वह देश के महान नायकों में से एक हैं।
Subedar Joginder Singh की कहानी हमें देश के प्रति समर्पण और कर्तव्य निभाने की प्रेरणा देती है। उनका साहस और नेतृत्व हमेशा भारतीय सेना के जवानों के लिए एक आदर्श रहेगा।
Major Shaitan Singh
Major Shaitan Singh और उनके जवानों को एक महत्वपूर्ण position पर तैनात होने के दौरान भारी Chinese attack का सामना करना पड़ा। हालांकि वह घायल हो गए थे और अपने साथी सैनिकों से कुछ मदद ले सकते थे, लेकिन उन्होंने उन सभी को वहां से जाने का आदेश दिया। उनके जवानों ने उन्हें एक boulder के पीछे रखा जहां अंततः वह अपनी चोटों के कारण शहीद हो गए।
Major Shaitan Singh को 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी अद्भुत वीरता और नेतृत्व के लिए मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया। उन्होंने Rezang La में अपनी कंपनी का नेतृत्व किया और भारी संख्या में दुश्मन सैनिकों के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ी।
चीनी सैनिकों ने उनकी पोजीशन पर कई बार हमला किया, लेकिन Major Shaitan Singh और उनके जवानों ने बहादुरी से उनका सामना किया। वह अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ते रहे और दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया।
लेकिन इस प्रक्रिया में, Major Shaitan Singh गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके शरीर में कई गोलियां लगीं और वह खून से लथपथ हो गए। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जवानों का नेतृत्व करते रहे।
जब उनके साथी उन्हें वहां से हटाने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। उन्होंने अपने जवानों को वहां से सुरक्षित निकलने का आदेश दिया और खुद एक boulder के पीछे लेट गए। वहीं पर वह अपनी चोटों के कारण शहीद हो गए।
Major Shaitan Singh की वीरता और बलिदान ने उनके जवानों को प्रेरित किया और वे दुश्मन को हराने में कामयाब रहे। उनका नेतृत्व और साहस Indian Army में एक मिसाल बन गया है।
Major Shaitan Singh का जन्म 1 दिसंबर 1924 को Jodhpur, Rajasthan में हुआ था। उन्होंने Indian Military Academy से ग्रेजुएशन किया और 1949 में Indian Army में commissioned हुए।
1962 के युद्ध के दौरान, Major Shaitan Singh की कंपनी Rezang La में तैनात थी। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना चीनी सेना का सामना किया और अपने जवानों को प्रेरित किया। उनकी वीरता और नेतृत्व ने भारतीय सेना को गौरवान्वित किया।
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Lt. Col. A B Tarapore
Lt. Col. A B Tarapore को Phillora पर कब्जा करने और armored thrust देने का निर्देश दिया गया था। वह 1965 के Indo-Pak युद्ध में अग्रणी भूमिका में थे और उन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। इसके अलावा, उन्होंने Butur-Dograndi और Jassoran पर भी हमला किया। हालांकि, युद्ध के दौरान, वह गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
Lt. Col. A B Tarapore को मरणोपरांत Param Vir Chakra से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उन्होंने 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अपनी टैंक रेजिमेंट का नेतृत्व करते हुए अद्भुत साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया।
Tarapore ने अपनी रेजिमेंट को Phillora और Chawinda sector में कई सफल ऑपरेशन करने में मार्गदर्शन दिया। उनकी रणनीति और नेतृत्व कौशल ने भारतीय सेना को इन महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा करने में मदद की।
11 सितंबर 1965 को, Tarapore की टैंक रेजिमेंट Butur-Dograndi और Jassoran पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन टैंकों का सामना किया और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया।
हालांकि, इस ऑपरेशन के दौरान, Tarapore की टैंक एक दुश्मन गोले से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। वह गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी टैंक को लड़ाई के मैदान से बाहर निकालने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई जारी रखी और अपनी जान गंवा दी।
Lt. Col. A B Tarapore की वीरता और बलिदान ने भारतीय सेना को प्रेरित किया और उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान पर एक निर्णायक जीत हासिल की। उनका साहस और समर्पण हमेशा याद किया जाएगा।
Tarapore का जन्म 18 अगस्त 1923 को हैदराबाद में हुआ था। उन्होंने भारतीय सेना में कमीशन लेने से पहले प्रतिष्ठित Doon School और Indian Military Academy में शिक्षा प्राप्त की।
उनकी वीरता और नेतृत्व कौशल ने उन्हें सेना में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया। उनकी मृत्यु भारतीय सेना के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी विरासत आज भी जारी है।
Lt. Col. A B Tarapore की कहानी हमें देश के प्रति समर्पण और बलिदान की प्रेरणा देती है। वह हमेशा भारत के महान सैन्य नायकों में से एक के रूप में याद किए जाएंगे।
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Final Words
ये सभी पुरुष अपने देश के लिए बहादुरी से लड़ते हुए मरे और कुछ major attacks और assaults को दुश्मनों पर सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इसीलिए उन्हें उनके योगदान को पहचानने के लिए सर्वोच्च श्रद्धांजलि के साथ सम्मानित किया गया, जिससे हमारा देश और अधिक सुरक्षित और संरक्षित बना।
इन वीरों की कहानियाँ हमें यह दिखाती हैं कि वीरता और बलिदान की भावना किसी भी देश की सुरक्षा और समृद्धि में कितनी महत्वपूर्ण होती है। उनके कार्यों ने न केवल युद्ध के समय में बल्कि शांति के समय में भी देश को मजबूती प्रदान की है।
इसलिए, यह हम सभी के लिए आवश्यक है कि हम इन बहादुर सैनिकों की कहानियों को जानें और उन्हें याद रखें, जिन्होंने अपने जीवन की आहुति देकर हमारे देश की रक्षा की। उनकी वीरता और बलिदान हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।